डिजिटल जानकारी की अकास्मिक वृद्धि तेजी से बदलती प्रौद्योगिकी और कंप्यूटर हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, फाइल फॉर्मेट और स्टोरेज मीडिया के डिजिटल अप्रचलन से उत्पन्न खतरों से निपटने के लिए हमें अप्रस्तुत करता है। डेटा क्रप्शन, भौतिक क्षति और आपदाओं की संभावनाएं डिजिटली इनकोडिंग जानकारी को जोखिम में डालता है। डिजिटल सामग्री, ई-रिकॉर्ड और ठोस साक्ष्यों का अप्रयोग भावी पीढ़ी के लिए बहुमूल्य जानकारी, बौद्धिक संपदा और विरासत की हानि के अलावा प्रशासनिक, न्यायिक और विधायी कार्यों में समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। हमारे डिजिटल ब्रह्मांड में टेक्स्ट, इमेज़, दस्तावेज़, ई-फाइलें, ऑडियो, वीडियो, 3डी मॉडल, वेब पेज़, नक्शे, डेटासेट, बिग डेटा, कम्प्यूटर जनित माइक्रोफिचे (सूक्ष्म संचिका) और विभिन्न डोमेन में डिजिटल के कई अन्य प्रारूप शामिल हैं। इसलिए, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि मानव विरासत के सभी रूपों में डिजिटल सामग्री और ई-रिकार्ड्स तक अभिगम और भावी उपयोग के लिए संरक्षित किया गया है। लंबी अवधि में डिजिटल सूचना जैसी खोज क्षमता, अभिगमता, प्रयोज्यता, विश्वसनीयता और प्रामाणिकता को सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण है। इसलिए, लंबी अवधि के संरक्षण और उपयोग के लिए उपकरण, प्रौद्योगिकी, मानक, सर्वोत्तम कार्य और नीति द्वारा समर्थित विश्वसनीय डिजिटल रिपॉजिटरी विकसित करना आवश्यक है।
डीईआईटीवाई ने एक राष्ट्रीय डिजिटल संरक्षण कार्यक्रम की परिकल्पना की दिशा में पहले ही कदम उठाए हैं। इस विजन को मूर्तरूप देने के लिए उठाए गए कदमों में ‘भारत की डिजिटल संरक्षण आवश्यकताओं पर राष्ट्रीय अध्ययन रिपोर्ट’ और सी-डेक पुणे तथा सी-डेक नोएडा में ‘डिजिटल संरक्षण के लिए उत्कृष्टता केन्द्र’ की स्थापना शामिल हैं। -
डिजिटल संरक्षण परियोजना:
डिजिटल संरक्षण सी-डैक, नोएडा के लिए उत्कृष्टता केंद्र
परियोजना सहभागीः सी-डैक, पुणे